Friday, April 26, 2013

दर्पण



पूछने लगा है अब
दर्पण यूँ  मुझसे
खोजते हो किसे अब
तुम यूँ मुझमे
कैसे  दिखाऊ अब
अक्स मैं तेरा
मासूम खून के धब्बे
उभरे इस कदर
लगता है हर चेहरा अब
मुझे दागदार सा
कोमल नाखुनो ने उकेरी
दरार अनगिनत
सुन्दर जिस्म तेरा अब
दिखे विछिन्न सा
खो गयी चमक अब
बेनूर मैं हुआ
देखना हो मुख जब
मन में झांकना
पा जाओ गर खुद को
इतनी दया करना
आइना ये सच का तब
जग को भी दिखा देना









6 comments:

  1. वाह सुनीता जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

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  2. शुक्रिया मेरा उत्साह बढ़ाया आपने प्रतिक्रिया दे कर :-)

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  3. भावपूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.

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  4. @डौ. जेन्नी शबनम जी -- उत्साह बढ़ने के लिए तहेदिल से शुक्रिया :)

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  5. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी..!!

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  6. @sanjay bhaskar ji .. haardik aabhaar .. ua sabhi ki sarahana se utsah milta hai .. chestaa karungi ap sabki ummidon par khari uatar saku ..jai shree krishna :)

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