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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Wednesday, February 18, 2015

कभी पुकारोगे हमें



जब भी नज्मों में आपकी हम ढलते है
बनकर खुशबू सहरा में हम बिखरते है ।

उड़ा  ले न जाए आँधियाँ ये धूल भरी
सीप बन तेरी आगोश में छुपे रहते है ।

जब  थामती है सागर सी बाँहें मुझको
कतरा- कतरा  तुझमे कहीं पिघलते है ।

छोड़ जायेंगे अपने कदमो के निशान
तपती रेत पर नंगे  पाँव  हम चलते है ।

एक बार मुड़कर कभी पुकारोगे हमें
आस ये ही लिए राहों  में ख़ड़े  रहते है ।



Friday, February 13, 2015

कुछ गीत अधूरे रहने दो



कुछ दर्द अधूरे रहने दो
कुछ सर्द हवाएँ बहने दो
सिलसिले  रहे यूँ ही चलते
कुछ हर्फ़ अधूरे रहने दो
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तेरी खामोश नजरो ने
एक सरगम सी छेड़ी है
छू  कर  मुझको बहकाती
 ये  बैरन हवा बसंती है
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मेरे भावो का विस्तार हो तुम
मेरे गीतों का अभिसार हो तुम
छेड़ जाती है जब हौले से हवा
दहका बहका सा  रुखसार हो तुम
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Thursday, February 12, 2015

लिखा है मौन

१ ) अनुबंध
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फूल -तितली 

अम्बर -धरा 
सागर -नदी 
सृष्टि के आरंभ से 
बंधे है प्रीत की डोर
बिना अनुबंध

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२)
लिखा है मौन
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 गीत कोई ग़ज़ल 
छंद ,काव्य ,महाकाव्य 
कोई लिखता खुदा 
प्रिया ,जानू, दिलरुबा
कोई लिखता अश्क
बेवफा, रक्कासा, बेरहम
हमने  प्रीत के सजदे
सर झुकाकर
लिखा दिया  है
मौन  !!!

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३)
मीठा  सागर
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नमकीन सिन्धु 

है कितना मीठा 
पूछो सरिता से 
उसने चखा है

Wednesday, February 4, 2015

क्षणिकाये -उगा सूरज , मेरे मन




क्षणिका १ -उगा सूरज
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लो
उगा सूरज
फ़ैल गया उजियारा
कुछ बड़े बड़े
बंद झरोखे वाले घर
सर उठाये खड़े है
प्रतीक्षित
आज भी
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क्षणिका २  - मेरे मन
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 जाओ
खोल दी मुट्ठी
उड़ो
अब
तुम्हारे हौसलों पर निर्भर है
बनोगे तितली
या
छुओगे गगन
मेरे मन





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