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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Saturday, January 21, 2017

नदी का जूनून



राक्षसी मुखौटे लगाये
उफनती लहरे
बार बार किनारो पर धकेल देती है
भरसक कोशिश करती है डराने  की
मौत का भय दिखाती है
पर
 हिम मानवो की गोद में खेली नदी को जूनून है 
 औरोरा बोरेअलिस की धुन पर नाचने का
बरमूडा ट्रायंगल में खो कर उसके रहस्य को जानने का
अंटार्टिका की  पेंगविंग्स के साथ हाथ मिलाने का
उसे समाना  है इन लहरो की बाहों में
मीलों की यात्रा ......
मंजिल के पास पहुंच कर

वापिस नही लौटती
जितनी तेजी से ये लहरें पटकती है किनारो पर
इसकी जिद बढती जाती है
सागर में मिल महासागर बनने की जिद
इन्ही लहरो के साथ चाँद को छूने की जिद
 खारे  में समां कर खारा हो जाने की जिद
काला  सागर में समाने  वाली एकमात्र नदी बनने की जिद
जो जीवन देती इसके ऊपरी सतह पर पलने वाली
गिनीचुनी मछलियो  और जीव जन्तुओ को
जिन्दा रखती है सागर के अस्तित्व को
सुनो न सागर 

खो जाने दो इसे बाहों में अपनी
बनने दो न इसे एक हिस्सा
तुम्हारा 



Thursday, January 19, 2017

एक ग़ज़ल,अधूरी बात-



वो जो लिखी थी कभी एक ग़ज़ल तुमने
रिस रिस के बह  रही है आज जिस्म से मेरे ॥


छोड़ गए थे तुम जहाँ बात अधूरी
ठहरे हैं वहीँ पर अब तलक लफ्ज़ मेरे ॥ 


Friday, January 6, 2017

आओ शर्म करें

चित्र गूगल से साभार


आओ फिर शर्म करे
सभ्य होने अदा रस्म करें
किसी ने कहा "कपड़ो का ख्याल रखो"
किसी ने "शाम होने के बाद घर से न निकलो"
किसी ने कहा "पुरुष मित्र न बनाओ "
किसी ने शराब न पीने की सलाह दी
कारण??
सबने एक सुर में कहा पुरुष जानवर होते है
मौका देख फायदा उठाते है
नोचते खसोटते है
तो आओ न फिर  शर्म करें
सभ्य होने पर शर्म करें
शर्म करें की हम पुरुषो को सभ्य  नही बना पाये ?
सुनो गुड़िया -
खिड़कियां खोल दो आने दो थोड़ी धूप
मुँह  न छिपाओ
अपनी पवित्रता को केवल यौनागों तक सीमित न करो
अपने चरित्र को इस सभ्य समाज का खिलौना न बनाओ
तुम आज भी वृंदा हो
पावन तुलसी...
ये वरदान तुम्हे स्वयं को स्वयं ही देना होगा
यहाँ तो केवल मूरत है माटी की मूरत
या कठपुतलियाँ है
जो बचे है वो ये ही जानवर है
 इनसे कैसा प्रमाण पत्र लेना
इन्हें तो अभी इन्सान होना भी नही आया
ना ही ये पूर्णतया जानवर है
आओ शर्म करें गुड़िया
मिल कर शर्म करें
इनको हम सभ्य नही बना पाए
उठो गुड़िया। 
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