Wednesday, December 25, 2024

चोरी


लघुकथा 

शीर्षक : -  चोरी
--------------------------
"बदलेगा सब बदलेगा,थोड़ा समय तो चाहिए न ,कोई छोटा मोटा रोग नही न है इ भ्रष्टाचार।"
"पचास दिन कहले थे परधान मंत्री जी ,तियालीस दिन हो गया ।हम लोग को तो अभी तक सब्जी ,राशन ख़रीदे में मुश्किल हो रहा। और कितना बखत लगेगा महाराज। अपने सेठ को देखिये इनको का मुश्किल हो रहा ।इनका सारा काम तो चल न रहा है । भष्टाचार करते है इ लोग ,टैक्स चुराते है इ लोग और भोगे पड़ता है हम आम गरीब जनता को।"
"देख लेना जेतना टैक्स चोरी किये है ,हाई फाइ दाम में सामान बेचे है सब माल बाहर कर लेगा इनकम टैक्स वाला। सबर रखो तनी ।भाई सरकार का पैसा है सरकार डंडा कर कर के बसुलेगी देख लेना ।सारा नबाबी झड़ जायेगा ।
अच्छा सुनो भैया भाभी आ रहे है हम थोड़ा स्टेशन जा कर आते है उनको रिसीव करके।सेठ को बोल दिए थे सुबह ही ।तुम जरा काउंटर सम्हाल लेना ।"
"ठीक है जाईये ।सुने है अभी बड़ा चेकिंग उकिंग चल रहा है । पलेटफारम कटवा लीजियेगा।"
"हाहा। तुम भी गजबे बात करते हो सुधीर । अरे मेन गेट से कौन जाता है ।रोड पर थोड़ा आगे जाने पर एगो दीवार थोड़ा टूटल है उहें से घुस जायेंगे । थोड़ा आगे बढ़ेंगे पलेटफारम आ जायेगा । आज तक कभी हमको कोई दिक्कत नही आया । फिर 5 रुपया कौन बर्बाद करता है ।एक हमारे टिकट न लेने से सरकार का खजाना में कौन सा डाका पड़ जाएगा।चलो चलते है ।तुम इधर ध्यान रखना।"
कह कर राम खेलावन निकल लिया। सुधीर काउंटर पर जम गया। सेठ जो इधर कान लगाये सब सुन रहा था वापिस टी वी पर आम गरीब जनता का इंटरव्यू देखने लगा काला धन और भष्टाचार को रोकने के लिए लोग प्रधानमंत्री के कसीदे पढ़ रहे थे ।सेठ मंद मंद मुस्करा रहा था ।
 *सुनीता अग्रवाल *नेह* 
25/12/2016

Tuesday, September 24, 2024

आकाश सी बेटियां

1)
"सुनो बेटियों"
सदियों से सुनती पढ़ती आई
स्त्री को होना चाहिए धरती के समान
सबका बोझ उठाने वाली
 सहनशीलता जिसका गुण हो प्रधान 
पर सुनो बेटियां 
मैं कहती हूं 
बनो तुम आकाश
धरती,मंगल,शनि ,
वृहस्पति ,बुध , 
 हों थोड़े थोड़े सभी तुम्हारे भीतर 
की धरती होना काफी नहीं आज की दुनिया में 
सहनशीलता की मात्रा इतनी ही हो कि 
जितने में बचा रहे आत्मविश्वास और स्वाभिमान ।
 2)
कृष्ण का आसरा मत देखना
कृष्ण होने के मायने बदल गए है 
अपनी पुकार को सिंहनाद में बदलने दो
तुम वो शक्ति हो 
जिसने देवो की भी रक्षा की है 
कभी दुर्गा बनकर कभी मेनका बनकर
तुम वो शक्ति हो जो  रौंदे जाने पर भी
नये जीवन की रचना करती है 
जैसे माटी कुम्हार की 
तुम वो शक्ति हो 
जब ललकारती हो प्रलय होता है 
याद रखो मौन रह जाना भी एक अपराध है ।

Thursday, September 5, 2024

रिश्तों का उपवन



शीत ..

ग्रीष्म ..
पतझड़..
मानसून..
वसंत ...
जरुरी है...
मौसम का बदलना
रिश्तो के उपवन में 
उर्वरता बनी रहती है
*********************

Thursday, May 23, 2024

बिटिया की शादी में स्वरचित गीत



                                                             video credit "Sanidhya Goyal"


लाडो चली है साजन से मिलने 
मन में भरे है उमंग और सपने
सपनो का उसका साजन सजीला
बनाएंगे वो  प्रीत का घर
काँधे से कांधा  मिला
साजन  के घर मे होगी
ममता की फुलवारी
मगन हो कर उसमें
भूलेगी बाबुल लाड़ी
नाजाँ  पली  मेरी लाडो 
है थोड़ी भोली भाली
नादानी माफ़ करना
अब है ये बेटी थारी ।

Monday, May 20, 2024

रसोई घर से नोटबुक तक

विधा _ हाईबुन 
शीर्षक - भ्रूणहत्या 
कई कहानियां रोज जन्म लेती है ।कभी रसोई में ,कभी कपड़े धोते हुए तो कभी सब्जी काटते हुए । और नोटबुक तक पहुंचते - पहुंचते खो जाती है । फिर कितनी भी कोशिश करो पर वो लौटती नहीं हैं। कोई कोई कुछ दयालु हो एक सिरा कोई पकड़ा जाती हैं। और फिर कभी सारा दिन तो कभी कई दिन,महीने,साल विरले ही पूर्ण होती हैं । किसी ने सच ही कहा है लेखन एक पूर्णकालिक काम है। कहां फ्री हो पातीं हैं हम की सब्जी जलती छोड़ दे या कोई भी हाथ का काम  और लेकर बैठ जाएं नोटबुक।और इस तरह रह जातीं है कई कहानियां अजन्मी ही ।

अधूरी कृति 
दिन रात झेलती 
दर्द प्रसूति। 

Sunday, May 12, 2024

माँ के नाम एक चिट्ठी

माँ 

अचंभित हो न ये पत्र देख कर। रोज तो फोन में ही बात हो जाती है फिर पत्र ! हां आज दिल किया कि तुम्हे पत्र लिखूँ । कई बातें जो सालों से मन मे दबी है जो आज भी लबों की परिधि में सिमटी है उनको आज़ादी दे दूं । माँ तुमने कितनी जद्दोजहद कर हम भाई बहनों को पाला पढ़ाया और काबिल बनाया। पिता जी अक्सर काम के सिलसिले में बाहर रहते तो घर की सारी जिम्मेदारी तुमने अकेले ने सम्हाली । घर बाहर सब कुछ ।  माँ आज मैं भी दो बच्चों की माँ  हूँ। उनको पालते सम्हालते मैंने जाना कि कितनी कठिन और चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी है यह । ऐसे वक्त में कई बार जब बच्चे किसी बात पर रूठ जाते है या कभी बहस करते हैं किसी सामान या खाने  की बर्बादी करते है तो उन्हें डांटते  या समझाते वक्त  मेरे मुंह से अक्सर वो बातें ही निकलतीं हैं जो तुम हमें कहा करतीं थीं पर उस वक्त तुम्हारी वो डांट  तुम्हारी वो नसीहतें हमें बुरी लगती थी ।हमारा मुँह गुब्बारे सा फूल जाता था ।  अब सब समझ आ गया है की तुम्हारी उन्हीं बातों ने मुझे इस लायक बनाया की मैं माँ की इस जिम्मेदारी को भली भाँति निभा सकूँ । और उस समय तुमसे की गई हर बहस के लिए माफ़ी मांग सकूँ और तुम्हें शुक्रिया कह सकूँ जो फोन पर आज  भी चाहते हुए भी नही कह पाती । आज "मातृ दिवस " पर लोग माँ को गिफ्ट दे रहे हैं मुझे बस ये चिट्ठी ही मिली तुम्हे देने को । हालांकि पता है माँ अपने बच्चों से न नाराज रहती है ना शिकायत करती है ना उनका शुक्रिया चाहती है । पर मैं बस अपने मन का बोझ हल्का करना चाहती हूं ।
ढेर सारी किस्सी और एक जादू वाली झप्पी ।
तुम्हारी डॉल
सुनीता अग्रवाल *नेह*
नई दिल्ली
ई मेल -sunitagobind@gmail.com



उपरोक्त चिट्ठी की रेकॉर्डिंग मेरी अपनी आवाज में 👇😊🙏