जागती रही निशा
समेटती रही
यादों की कतरन
शबनम के मोती से
पिरोती रही
मेरे ख्वाबों की माला
बैचैन हवाएं
सर्द रातों में
सुलगाती रही चिंगारियां
अरमानों की राख तले
जागती रही निशा
बन के हमराज
अश्को को मेरे
भर के आँचल में
अम्बर का आँगन
सजाती रही
रात भर .........,,
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