एक नज़र ..चलते चलते
Friday, May 24, 2013
एक मुट्ठी धुप
बिखरने दो
एक मुट्ठी धुप
आँगन में मेरे
छाँव की कालिमा
अब सही नहीं जाती
खिलने दो
खुशियों के फूल
बगिया में मेरे
झरते पत्तो की जुदाई
अब सही नही जाती
दर्द के नग्मे
ना सुना दर्द के नग्मे हमे
जिन्द्गी अब रास आती नही
मौत कहे तु चल मेरे सँग
पर शर्त है एक बार मुस्कराने की
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