Tuesday, August 27, 2013

चीरहरण






लगी न बाजी
हुयी न जीत हार

फिर क्यूँ भोगती चीरहरण

सीता और द्रौपदी आज  …।?


पावन वृन्दावन
क्यूँ बन रहा चौपाल
दु:शासन  लीलायें
देख रहा धृतरास्ट्र

गांडीव गदा सब
क्यूँ मौन है आज
हे पार्थ सारथी
रथ हांके कौन दिशा

कहा था तुमने 

 होगी  हानि धर्म की जब जब
लूँगा अवतरण में तब तब

क्यूँ भूले वचन तुम 



हे दौपदी सखा 

कहाँ  छुपाया चक्र सुदर्शन

छेड़ते क्यूँ नही

मेघमल्हार या दीपक राग 


डुबो दो अब पाप की नैया

धर्म  दीपक फिर से जला दो

आओ तुम हे मुरलीमनोहर

प्रेम की वंशी फिर से बजा दो 

8 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-बहुत खूबसूरत गीत

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    1. @Ashok khachar ji .. स्वागत है आपका .. रच को पसाद करने एवेम सराहना कर मेरा उत्साह बढाने के लिए हार्दिक आभार :)

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  2. @arun sathi ji .. स्वागत है आपका ... भारत में दिनोदिन बढ़ रही दुराचार की घटनायो पर लिखी ये रचना आपको पसंद आई आभार ..दिल से :)

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  3. वर्तमान परिस्थितियों पर सटीक प्रश्न उठाती हुई रचना ने प्रभावित किया । बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको । लिखती रहें

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    1. स्वागतम @अजय जी ... स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया दे कर मेरा उत्साह बढ़ने के लिए हार्दिक आभार .. jsk

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  4. मुरलीमनोहर से प्रार्थना ही तो करनी है, शरणागत वत्सल प्रभु शरण में लेंगे ही!
    सुन्दर आह्वान!

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