एक नज़र ..चलते चलते
Sunday, August 31, 2014
बहारें बैचेन है
नगमा ऐ इश्क अब गुनगुना लीजिये शाम से पहले दीपक जला लीजिये
रूठे दिलबर को अब तो मना लीजिये सजदा ऐ इश्क में सर झुका दीजिये
देख कर आईना यूँ न शर्माईये बहारें बैचेन है बाँहें फैलाईये
आँधियों को न यूँ अब हवा दीजिये कश्ती नफरत की अब तो डुबो दीजिये
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment