एक नज़र ..चलते चलते
Saturday, April 25, 2015
प्रीत का मंदिर
संजो के रख लिए
मन के पन्नो पर
गाहे -बेगाहे कहे गए
सच्चे या की झुटे
वो प्रीत पगे शब्द
उन्हें जोड़ जोड़
बनाती रहती हूँ
प्रीत का मंदिर
कभी फुर्सत हो तो आना
मेरे इस मंदिर में
तुम्हारे चरणो की वाट जोह रही है ये
प्राण प्रतिष्ठा कर जाना
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