Sunday, June 28, 2015

दोहे - सावन ,साजन



दोहे एक प्रयास
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१) सावन बरसा झूम के , खिले शाख पर बौर ।
   सूखा  आँगन "नेह " का , वृद्धाश्रम अब ठौर ॥
२) नैना बरसे दिवस निशि , बाँझ कहे जो कोय ।
   कभी न सूखे मेह से , बीज अंकुरित होय । ।
३ ) पिया- पिया जपे मन ये ,भँवरे सा मँड़राय ।
   "नेह" न मीरा साधिका,  मोहन कैसे पाय ।
४) पिया प्रवासी कर रहे ,मैमन के सँग रास  ।
    "नेह " विरहिनी खोलती , चन्द्र  देख उपवास ॥ 

Friday, June 26, 2015

मोमबत्तियां



क्षणिका
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मोमबत्तियां
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जल उठती है
मोमबत्तियां
हर हादसे के बाद
पर मिटा नहीं पाती  अँधेरा
जला  नही पाती पट्टी
न्याय की देवी की आँखों पर बँधी
पिघला नही पाती
इंसानियत की  धमनी में जम चुके
रक्त के थक्के
 हताश,बुझी  मोमबत्तियां
करने लगती है इन्तजार
फिर
 किसी कली के मसले जाने का..



Wednesday, June 24, 2015

इच्छाए , . भूख ,कतरन



क्षणिकाएँ
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१. इच्छाए
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इच्छाओ की कलम से
लिखी किताब जिंदगी की
भरती  नही
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२. भूख
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भूख
बन जाये इबादत
या की हवस
 तृप्त न होती
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३. कतरन
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उनसे पूछिये
कतरनों का मोल
जिनके हिस्से आती हैं
उतरन केवल
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Sunday, June 21, 2015

पिता …


पिता …
यह शब्द सुनते ही मन में एक गर्व , आत्मविस्वास और सुरक्षा का अहसास भर जाता है । पिता मेरे लिए एक विचार ,मेरे अस्तित्व का एक हिस्सा  है।

 मेरी ये रचना केवल मेरे जन्म दाता  पिता को नही वरन पिता के रूप में जिन चार लोगो से में प्रभावित हुयी या जिनकी छाप कही मेरे अंदर मैं  महसूस करती हु उन सभी को समर्पित है  ।पह्ले मेरे पिता जी ,दूसरे मेरे ससुर जी तीसरे मेरे नाना जी और चौथे मेरे जीवन साथी :)
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पिता …
सिर्फ जन्मदाता नही
सिर्फ पालनकर्ता नही
सिर्फ एक शब्द नही
एक सम्पूर्ण विचार होता है
जो कही बच्चो में पलता है
पिता …
 निरंतर बहती नदी नही
धीर गंभीर  सागर भी नही
अटल खड़ा  पर्वत ही नही
एक सम्पूर्ण सृष्टि होता है
समयानुसार रूप बदलता है
पिता …
कभी निरंकुश राजा वो
कभी परियों का शहजादा
कभी विदूषक कभी सखा वो
आदर्श , संस्कार  के बीज बोता  वो
आत्मविस्वास बन साथ रहता
 पिता … केवल वृक्ष नही
बीज भी  वही होता है