एक नज़र ..चलते चलते
Sunday, July 19, 2015
काल कोठरी
कालकोठरी
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जाने क्यों खोल आई थी
काल कोठरी की
जंग लगी जंजीरों को
थरथराने लगी है
सजायाफ्ता अभिलाषायें
बाहर की दम घोटू हवा
इन्हे रास नही आती
रौशनी तन जलाती है
फांसी के इन्तजार में कटती जिंदगी को
तड़पती मौत की सजा दे आई हूँ
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