एक नज़र ..चलते चलते
Thursday, January 19, 2017
एक ग़ज़ल,अधूरी बात-
वो जो लिखी थी कभी एक ग़ज़ल तुमने
रिस रिस के बह रही है आज जिस्म से मेरे ॥
छोड़ गए थे तुम जहाँ बात अधूरी
ठहरे हैं वहीँ पर अब तलक लफ्ज़ मेरे ॥
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