दर्पण बोला
सोने की थाल
धुंध संग संघर्ष
निखरी आभा
भ्रम जो टुटा
बिखरे ख्वाब सभी
शीशे के बने
दर्पण बोला
"मै " ही सबसे बुरा
ढूंढता कहाँ ??
प्रतिबिंबित
अंतर्मन मैं तेरा
नजर मिला
नम थी धरा
पत्ते पत्ते पसीजे
नभ जो रोया
जलती रही
संस्कारो की चिताएं
देश में मेरे
नभ के आँसू
सज गए धरा पे
बनके मोती
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