एक नज़र ..चलते चलते
Friday, January 18, 2013
संवेदनाये
मुख दर्पण
देख न पाये सखी
प्रेमांध नैन
बैठ मुंडेर
काँव -काँव करे है
श्वेत कपोत
मृत जो हुयी
संवेदनाये मेरी
मैं जीती गयी
सहला गयी
घुंघराली लटों को
बेशर्म हवा
करूँ अर्पण
कब्र पर अपनी
अश्क सुमन v
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