है कैसी ये मजबूरी
तुम दिन को अगर रात कहो
रात कहते हम भी
गर दिन को मैं कहु दिन
तुम नाराज हो जाते हो
दिखने लगते हो दुनिया के नक़्शे में
हर वो जगह जहाँ अभी रात है
और मान लेती हु मैं तुम्हारी बात
तुम्हारी खुशियों की खातिर
दिन को रात समझ खो जाती हु
खयालो में ,.. सजाने लगती हु सपने
पलकें बंद कर लेती हूँ
उस रात की अनुभूती में
और तभी तुम चुटकी बजा देते हो
कहते हो "..पगली ..कहाँ खो गयी ..??
देखो कितना दिन निकल आया ..
और तुम अभी तक सो रहे हो ..!!!???
डाल देते हो असमंजस में मुझे
क्या कहूँ अब ..दिन या रात ..???
पता है मुझे - तुम कभी सहमत न होगे मुझसे
मुझे ही हर बार झुकना है
इसी तरह .. आ जायेगी साँझ
तब भी ...दोनों होंगे सही
दोनों गलत ,,सहमत ,,असहमत
इसी तरह उलझे हुए ...
तुम रात को देखते .... और मैं ..??!!
तुम्हारी रातों को देखते हुए
दिन के इन्तजार में .......
जादुई तुली
भरने लगी रंग
सूने कैनवास पर
विविध न्यारे प्यारे
जीवन भरे
कभी फूलों से चुरा
कभी मौसम से ले उधार
उभरने लगी तस्वीर मनचाही
निखरने लगा कैनवास
खेलता रहा रंगों से मनमाना\
खिलखिलाता रहा कैनवास
जैसे मासूम बच्चा
पहन नव परिधान
इतराता रहा जैसे
कोई नवोढ़ा कर सिंगार
लाल हरे नील पीले
रंगों की यारी
नित नए रूप में छाने लगी
खेल खेल में
जादू जो छाया श्वेत रंग का
हुआ दीवाना
इजहारे इश्क में परवाने ने
डुबो कर खुद को श्वेत रंग में
जीवन भरे कैनवास को
प्रीत के रंग में रंग डाला
बुद्धिदयिनी
श्वेत्वस्त्रावृता शारदे
हंसावाहिनी
कर दो उज्जवल
मेरा अंतर्मन भी
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आम्र मंजरी
दूँ पुष्पांजलि माते
भर अंजुरी
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वीणावादिनी
छेड़ तू सरगम
ज्ञानदायिनी
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जारी है जंग
मेघो की भानु संग
नभ प्रांगन
सर्द हवाएं
करती उपहास
क्षुब्ध किरणे
मुस्कान तेरी
डस गयी बैरन
ये महंगाई
प्रिये ...स्वागत
नवयुग तुम्हारा
कहे युगांत
जुबां खामोश.... नजरें भी गुमशुम
पूछ रहे हो हाले -दिल
पढ़ लो तुम .. नैनो में अपनी
छुपी है जिनमे दस्ताने दिल
हम भी वही ..तुम भी वही
चलो आज ये वादा करले
चलेंगे यूँही साथ साथ हम
एक राह के हम अजनबी
फ़र्जे मोहब्बत यूँ अदा करले लें
उम्र तमाम यूं गुजर कर लें
बेवफाई का दीपक जला के सनम
वफाओ के रिश्तों को रोशन करें
ढालना न मुझको गीतों और नगमो में
ऐ सनम प्यार का नजराना चाहू यही
सुना कर किस्से मेरी बेवफाई का
प्रेम की लौ\ यूँही दिल में जलाये रखना