Wednesday, April 24, 2013

सिसकी हवा

उठ रे इंसा
बुझा कैंडल जला
हैवानियत

उगा सूरज
बुझा कैंडल जगा
संवेदनाये/ मन मनुज

इंसानियत
हुयी फैशनेबुल
हो गयी गर्त


 
कृष्ण प्रभात

गाती नही कोकिल
मंगल गान
गिद्धो की महफिल
सिसकियो की तान

देश महान
गाती नही कोकिल
मंगल गान
गिद्ध करे नर्तन
गौरेया ताने आह

सौम्य भारत 

कलुषित हृदय
जन मानष 

फैलती रही 

सिसकियाँ मासूम
लुटती रही

सिसकी हवा

कलियो का क्रंदन 
उसने सुना

वहशीपन
विज्ञान की ये देन
प्रगतिपर

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