Wednesday, November 19, 2014

वो एक सिरा



वो एक सिरा  छूट सा गया
बंधे थे जिसके छोर हम
लगता है कुछ रीता भीतर
एक सन्नाटा शोर मचाता
चल रही आंधी बाहर भीतर
क्यों लगता है रूठीं बहारें
पतझड़ ने है पंख पसारे
रूठे रूठे अलफ़ाज़ तुम्हारे
जाने न हम कैसे मनाये
पर थामे बैठे है एक सिरा
विश्वास की डोर का
की.…....
कभी तुम आओगे
लपेटते हुए वो दूसरा सिरा
आज -- कल --या दस साल बाद
या फिर निकले दस जन्म भी
हैरान हूँ सब देखती हूँ
सब जानती हूँ
उन्मत्त लहर से तुम
कभी चाँद को छूने की कोशिश
कभी सूरज को पाने की जिद
कभी किनारे पर आ कर
सीपियों को छेड़ना
नन्हे मुन्ने घरौंदे को तोडना ,हसना
फिर भाग जाना तुम्हारा खिलखिलाते हुए
पर आँखे मूंदे हूँ
इन्तजार करती हूँ किनारो पर खड़ी
उस लहर का
जो  .........
कभी तो आएगी  मुझे भिगोने
आतुर सी

Thursday, November 13, 2014

अनबुझ प्यास



फिर बरसने को आतुर
कुछ बादल  घिरे है भरे भरे
हिम दुशाला ओढ़े मही
सहमी सहमी सी सिकुड़ रही
ये कैसी अनबुझ आस है !!!

पर्दानशीं कोई भेद रहा है
कोहरे की चादर गहरी
पिघलेंगे कभी ग्लेशियर
फिर निकलेगी गंगा कोई
ये कैसी अनबुझ प्यास है !!!

हुस्न का लुटेरा कोई
दिल की गलियो में घूम रहा
कोई भर दे कोई प्रीत का प्याला
रूप की नगरी ने है जो लूटा
ये कैसी अनबुझ तलाश है !!!

  




Wednesday, September 17, 2014

त्रिवेणी -ऐ इश्क तेरी ये फितरत





त्रिवेणी विधा में लिखने का एक प्रयास ... पाठको की समीक्षा का स्वागत है -

१)
राख से धुँआ उठा देती है
बनके दरिया प्यास बढ़ा  देती है

ऐ इश्क तेरी फितरत डराती है मुझे  !!!

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२)
जा बैठा मंदिर में बन गया है ईश्वर
छूना मना है मुझको वो पावन प्रस्तर

इन हाथो ने बड़े प्रेम से तराशा था जिसे !!!
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Sunday, August 31, 2014

बहारें बैचेन है


नगमा ऐ इश्क अब गुनगुना लीजिये शाम से पहले दीपक जला लीजिये
रूठे दिलबर को अब तो मना लीजिये सजदा ऐ इश्क में सर झुका दीजिये
देख कर आईना यूँ न शर्माईये बहारें बैचेन है बाँहें फैलाईये
आँधियों को न यूँ अब हवा दीजिये कश्ती नफरत की अब तो डुबो दीजिये

Friday, August 1, 2014

टूटे झरोखा





पतझड़ बीते अब सावन की बात हो 
नफरत छोड़  मोहब्बत की बात हो 
टूटे झरोखा किसी शीशमहल का
जरुरत है अब पत्थर हरेक हाथ हो 




Monday, March 31, 2014

जागती रही निशा



समेटती रही 
यादों की कतरन 
शबनम के मोती से 
पिरोती रही 
मेरे ख्वाबों की माला 
बैचैन हवाएं 
सर्द रातों में 
सुलगाती रही चिंगारियां
अरमानों की राख  तले 
जागती रही निशा 
बन के हमराज 
अश्को को मेरे 
भर के आँचल में 
अम्बर का आँगन 
सजाती रही 
रात भर .........,,


Wednesday, March 5, 2014

भारत की नारी


१)सरगम है लोरी है 

भारत की नारी 
रेशम की डोरी है । 

२)
अबला जिसको  माना 
लक्ष्मी बाई है 
तुम भूल नही जाना । 


३)
बाती - सी जलती है
दीपक बन नारी
घर का तम हरती है ।
४)
सीता का सत जिसमे
तुलसी - सी पावन
गौरी का तप इसमें ।


5)
सपने लाखो मन में
करुणा का सागर
कजरारी आँखों में

६)
परिवार न पूरा है
नारी तेरे बिन
ब्रह्माण्ड अधुरा है ।


७)
बिन पात न पेड़ सजे
मसली जो कलियाँ
फल फूल कहाँ उपजे । 

Saturday, January 25, 2014

चमन की शोभा

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http://www.youtube.com/watch?v=jGb9Pakjy9I






हर फूल निराला होता है 

गुलशन को प्यारा होता है 

लाल नीला पिला गुलाबी 

चमन कि शोभा होता है 


कोई खूबसूरत होता है 



कोई जग को खुशबु देता है



औषधी बन जाता है कोई 

गुण तो सबमे होता है


 कोई प्रेम प्रतीक होता है

कोई शांति सूचक होता है

काँटों में खिल कर कोई

जीने का संदेसा देता है