लगी न बाजी
हुयी न जीत हार
फिर क्यूँ भोगती चीरहरण
सीता और द्रौपदी आज …।?
पावन वृन्दावन
क्यूँ बन रहा चौपाल
दु:शासन लीलायें
देख रहा धृतरास्ट्र
गांडीव गदा सब
क्यूँ मौन है आज
हे पार्थ सारथी
रथ हांके कौन दिशा
कहा था तुमने
होगी हानि धर्म की जब जब
लूँगा अवतरण में तब तब
क्यूँ भूले वचन तुम
हे दौपदी सखा
कहाँ छुपाया चक्र सुदर्शन
छेड़ते क्यूँ नही
मेघमल्हार या दीपक राग
डुबो दो अब पाप की नैया
धर्म दीपक फिर से जला दो
आओ तुम हे मुरलीमनोहर
प्रेम की वंशी फिर से बजा दो