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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Friday, September 21, 2018

प्रतीक्षा (क्षणिकायें )


१)
मैं
 

आरती थाल में सजी 
कर्पूर की डली
कभी मिलना मुझसे 
तुम अग्नि की तरह 

की बस
बची रह जाये सुंगध
उस मिलन उत्सव के बाद
जीवन भर
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२)
बीत तो जायेंगी
यूँ चुटकियों में
घड़ियाँ
प्रतीक्षा की
इतना दिलासा भर देते जाओ
कि
लौटोगे
सूरज के बुझने
से पहले
 
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३)
ये जो आज फिर व्यस्तता की आड़ लेकर
 तुमने टाल दिया  मेरे सवाल का जवाब
" बाद में बताता हूँ " कह कर
ऐसे कई " बाद में "और ' कल " मेरा उधार है तुम पर
न ..न.. मुझे कोई जल्दी भी नही है
इत्मीनान से चुकाना तुम ये उधार 

जीवन  के  उस बेला में
जब तुम्हारे पास करने को कुछ न हो
जब तुम्हारे पास तुम्हारी बातों को सुनने वाला कोई न हो
तब खोल लेना मेरे सवालों का बही खाता
और इत्मीनान से देते जाना जवाब
हालांकि उस समय तक मेरे लिए वो अर्थहीन हो चुके होंगे
पर फिर भी
मैं बड़े चाव से सुनूँगी तुम्हारी बातों को
ताकि तुम्हारे ठहरे हुए जीवन को
मिल सके पुनः एक नया लक्ष्य
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Friday, September 14, 2018

हिंदी विमर्श


लघुकथा
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हिंदी विमर्श
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त्रिवेदी जी हिंदी सहित्य की जानी मानी हस्ती है ।हिंदी पखवाड़ा के मौके उनके घर में ही एक गोष्ठी का आयोजन किया गया है जिसमे बड़े बड़े साहित्यकार आमंत्रित हैं। हिंदी को उन्नत और समृद्ध कैसे बनाया जाये ? युवा पीढ़ी में हिंदी के प्रति सम्मान एवं हिंदी साहित्य में उनकी रुचि कैसे बढ़ायी जाये जैसे मुद्दों पर चाय नाश्ते संग गरमागरम चर्चा चल रही है ।तभी अचानक त्रिवेदी जी का फोन घनघनाता है ।दूसरे शहर में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे पुत्र का फोन है ।त्रिवेदी जी उपस्थित जनों से क्षमा माँगते हुए फोन उठाते है -" हेलो ।हाँ बेटा बोलो ।"
उधर से जवाब पाने के बाद पुनः त्रिवेदी जी की आवाज़ कुछ खनकते स्वरों में - " अरे वाह । हाँ तो ठीक है छब्बीस तारीख बृहस्पति वार ठीक है।उसी दिन की टिकट बनवा लो ।"
कुछ सेकेंड त्रिवेदी जी उधर की बात सुनते हैं । फिर अचानक ठहाका लगा कर हँसते हुए आँखों की चमक दोगुनी करते हुए मुखड़े पर गर्व का भाव धरते हुए बैठक में नजरें दौड़ाते हुए बोले -" छब्बीस " माने "ट्वेंटी सिक्स" और" बृहस्पति वार " माने "थर्स-डे" ।
फोन बंद होने के बाद पुनः एक गर्वीली दृष्टि बैठक में घुमाते हुए -"असल में मेरे बेटे मयंक की शिक्षा शुरू से ही शहर के नामी अंग्रेजी मीडियम स्कूल से हुई है ना तो हिंदी में दिन के नाम ,तारीख इत्यादि उसे समझ नही आते । चलिए चलिए चर्चा शुरू कीजिए ।हाँ तो मिश्रा जी हम कह रहे थे कि हिंदी को भारत की "राष्ट्रीय भाषा " का दर्जा दिलाने के लिए सरकार पर दवाब बनाने के हेतू एक राष्ट्र व्यापी आंदोलन चलाना ही होगा।एवं युवाओं का आह्वाहन भी करना होगा इस पवित्र कार्य में ।साथ ही हर भारतीय से  अपील करना  होगा की घर में ज्यादा से ज्यादा हिंदी भाषा का प्रयोग करें  "
तालियों की गड़गड़ाहट बैठक से निकल कर चारो दिशाओं में फैलने लगी है ।
-सुनीता अग्रवाल *नेह* (14/09/2018)
#हिंदी_दिवस

Wednesday, August 22, 2018

लाडो चली है साजन से मिलने

२०१५ मे बडी बिटिया की शादी के अवसर पर लिखी कुछ पंक्तियाँ

लाडो चली है साजन से मिलने
मन में भरे है उमंग और सपने

सपने में उसके साजन सजीला
बनाएंगे वो  प्रीत का घर काँधे से कांधा  मिला

प्रीत के घर में होगी भरी पुरी  फुलवारी
ममता की छाँव तले भूलेगी बाबुल लाड़ी

छोटी सी दुल्हन अंगना में डोलेगी
पायल गूंजेगी जैसे घंटी शिवाला में

नाजाँ  पली  लाडो मेरी है थोड़ी भोली भाली
नादानी माफ़ करना अब है ये बेटी थारी 


Tuesday, August 21, 2018

हम सब उस भीड़ का एक हिस्सा बन चुके है ।


सुनो भीड़
जिस बल के नशे में धुत्त
तुम कानून की चिन्दियाँ उड़ाते फिरते हो 
तुम्हारी वो  ताकत लाठी, भालो ,पत्थरो ,तलवारों में निहित है 
तुम्हारी वो ताकत सत्ता लोलुपों की रखैल है 
इन सबके वगैर तुम उस  फूल की तरह हो 
जो भगवान के मुकुट से गिर कर 
नयी भीड़ के पैरों तले रौंद दी जाती है
याद रखो युद्ध हो या शतरंज
प्यादे ही शहीद हुआ करते है 
ये भी याद रखने की बात है 
प्यादों के नाम कभी इतिहास की पन्नो  में नही लिखे जाते
ओह्ह...
भूल जाती हूँ  
भीड़ के कान नही होते 
भीड़ की आँखे भी नही होती 
यहाँ तो केवल कठपुतलियाँ है
लौट आती है मेरी आवाज मुझ तक 
देखती हूँ हर दिन 
भीड़ का रास 
खो गयी है आवाज़ मेरी 
सुन्न हो गए है कान
पथरा गयी है दृष्टि 
बस अब ये एक समाचार की हेडलाइंस भर रह गयी है 
प्रत्यक्ष 
या 
अप्रत्यक्ष 
मैं भी अब उसी भीड़ का हिस्सा बन चुकी हूँ
हम सब उस भीड़ का एक हिस्सा बन चुके है ।

Monday, July 30, 2018

जोड़ रहे हैं दो कुटुंब दिल से दिल की लड़ियाँ

मौका था भतीजी की शादी का फरमाईश थी परिजनों की तो इस उत्साह भरे माहौल में कोशिश की स्वरचित कुछ  गुनगुनाने की :)

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रेशम का धागा ,फेविकोल ,न हथकड़ियाँ 

जोड़ रहे है दो कुटुंब दिल से दिल की लड़ियाँ  

बड़े नसीबो से आई ये रात मुरादों वाली 
चंदा सी लाडो मेरी बन गयी दुल्हनिया 

सूरज न चंदा फिर जगमग है ये आँगन 
इन्दर जैसा दूल्हा राजा  लेने आया सजनिया 

राम जानकी सी ये जोड़ी है बनायीं रब ने 
देव पित्तर और सम्बन्धी दे रहे है बधाईयाँ 
                           --सुनीता अग्रवाल "नेह "

Wednesday, May 2, 2018

हर तरफ शोर है


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शोर ,शोर ,शोर 

हर तरफ शोर है 
आरती का शोर 
अजान का शोर 
देश भक्ति का शोर 
देश द्रोह का शोर 
धर्म का शोर 
जातियों का शोर 
प्रीत का शोर 
रीत का शोर
फागुन में उड़ते गुलाल का शोर
राहों में उड़ते गुबार का शोर 
कभी कुछ पल जब अकेली बैठती हूँ 
तो अपने ही आकांक्षाओं और 
लालसाओं का शोर 
कितने आदि हो गए है हम इस शोर के 
सोचती हूँ कभी जब वाकई शान्ति होगी 
तो कहीं हम उस शांति के शोर से 
पागल तो नही हो जाएंगे ???
-- सुनीता अग्रवाल "नेह"
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