करने लगा है बात आँखों में आँख डाल
आँचल में छिपने वाला शेर हो चला है ।
निकाल देता है वर्षा को चाहे जब घर से
रुख आसमान का क्यों कड़ा हो चला है ।
निभ गया दो दिन तो जश्न मनाने लगे
रिश्ता भी फेविकोल का एड हो चला है ।
रख आया है दीपक रात चौराहे पर
था इंसान अब मसीहा हो चला है ।
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