प्रार्थना ,अजान के स्वर
घर लौटते पंछियो के कलरव
मृदु हवाओ के संगीत की धुन पर
कहीं सज जाती है महफ़िल
मदमस्त कातिल शोखियां
दिलकश अदाओं के मुखौटे के पीछे
टूटन ,वेदना ,चीत्कार
मजबूरियां,प्रताड़नाएं
बन जाती है नज्म
गुनगुनाती नज्म
सूखे अश्रुकण
बन जाते है थिरकन
मदहोश थिरकन
दूर कहीं
बुझते दिए के साथ
खुशबु लुटाते
झरने लगते है
हरश्रृंगार ।
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