माँ
अचंभित हो न ये पत्र देख कर। रोज तो फोन में ही बात हो जाती है फिर पत्र ! हां आज दिल किया कि तुम्हे पत्र लिखूँ । कई बातें जो सालों से मन मे दबी है जो आज भी लबों की परिधि में सिमटी है उनको आज़ादी दे दूं । माँ तुमने कितनी जद्दोजहद कर हम भाई बहनों को पाला पढ़ाया और काबिल बनाया। पिता जी अक्सर काम के सिलसिले में बाहर रहते तो घर की सारी जिम्मेदारी तुमने अकेले ने सम्हाली । घर बाहर सब कुछ । माँ आज मैं भी दो बच्चों की माँ हूँ। उनको पालते सम्हालते मैंने जाना कि कितनी कठिन और चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी है यह । ऐसे वक्त में कई बार जब बच्चे किसी बात पर रूठ जाते है या कभी बहस करते हैं किसी सामान या खाने की बर्बादी करते है तो उन्हें डांटते या समझाते वक्त मेरे मुंह से अक्सर वो बातें ही निकलतीं हैं जो तुम हमें कहा करतीं थीं पर उस वक्त तुम्हारी वो डांट तुम्हारी वो नसीहतें हमें बुरी लगती थी ।हमारा मुँह गुब्बारे सा फूल जाता था । अब सब समझ आ गया है की तुम्हारी उन्हीं बातों ने मुझे इस लायक बनाया की मैं माँ की इस जिम्मेदारी को भली भाँति निभा सकूँ । और उस समय तुमसे की गई हर बहस के लिए माफ़ी मांग सकूँ और तुम्हें शुक्रिया कह सकूँ जो फोन पर आज भी चाहते हुए भी नही कह पाती । आज "मातृ दिवस " पर लोग माँ को गिफ्ट दे रहे हैं मुझे बस ये चिट्ठी ही मिली तुम्हे देने को । हालांकि पता है माँ अपने बच्चों से न नाराज रहती है ना शिकायत करती है ना उनका शुक्रिया चाहती है । पर मैं बस अपने मन का बोझ हल्का करना चाहती हूं ।
ढेर सारी किस्सी और एक जादू वाली झप्पी ।
तुम्हारी डॉल
सुनीता अग्रवाल *नेह*
नई दिल्ली
ई मेल -sunitagobind@gmail.com
8 comments:
भावनाओं से परिपूर्ण पत्र।
सुन्दर
Wah wah
शुक्रिया
शुक्रिया
बहुत ही ज्यादा दिल तक उतरने वाले शब्द
बहुत ही भावपूर्ण शब्द 😌😌💐💐
आभार
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