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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Monday, May 20, 2024

रसोई घर से नोटबुक तक

विधा _ हाईबुन 
शीर्षक - भ्रूणहत्या 
कई कहानियां रोज जन्म लेती है ।कभी रसोई में ,कभी कपड़े धोते हुए तो कभी सब्जी काटते हुए । और नोटबुक तक पहुंचते - पहुंचते खो जाती है । फिर कितनी भी कोशिश करो पर वो लौटती नहीं हैं। कोई कोई कुछ दयालु हो एक सिरा कोई पकड़ा जाती हैं। और फिर कभी सारा दिन तो कभी कई दिन,महीने,साल विरले ही पूर्ण होती हैं । किसी ने सच ही कहा है लेखन एक पूर्णकालिक काम है। कहां फ्री हो पातीं हैं हम की सब्जी जलती छोड़ दे या कोई भी हाथ का काम  और लेकर बैठ जाएं नोटबुक।और इस तरह रह जातीं है कई कहानियां अजन्मी ही ।

अधूरी कृति 
दिन रात झेलती 
दर्द प्रसूति। 

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

एक सच ये भी

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

जी । कोई विचार जब तक लिखा न जाए वो टिकता नहीं ।🙏

Anonymous said...

सही कहा नेह सुनीता

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