"सुनो बेटियों"
सदियों से सुनती पढ़ती आई
स्त्री को होना चाहिए धरती के समान
सबका बोझ उठाने वाली
सहनशीलता जिसका गुण हो प्रधान
पर सुनो बेटियां
मैं कहती हूं
बनो तुम आकाश
धरती,मंगल,शनि ,
वृहस्पति ,बुध ,
हों थोड़े थोड़े सभी तुम्हारे भीतर
की धरती होना काफी नहीं आज की दुनिया में
सहनशीलता की मात्रा इतनी ही हो कि
जितने में बचा रहे आत्मविश्वास और स्वाभिमान ।
2)
कृष्ण का आसरा मत देखना
कृष्ण होने के मायने बदल गए है
अपनी पुकार को सिंहनाद में बदलने दो
तुम वो शक्ति हो
जिसने देवो की भी रक्षा की है
कभी दुर्गा बनकर कभी मेनका बनकर
तुम वो शक्ति हो जो रौंदे जाने पर भी
नये जीवन की रचना करती है
जैसे माटी कुम्हार की
तुम वो शक्ति हो
जब ललकारती हो प्रलय होता है
याद रखो मौन रह जाना भी एक अपराध है ।
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