एक नज़र ..चलते चलते
.
** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *
Sunday, July 19, 2015
काल कोठरी
कालकोठरी
------------------
जाने क्यों खोल आई थी
काल कोठरी की
जंग लगी जंजीरों को
थरथराने लगी है
सजायाफ्ता अभिलाषायें
बाहर की दम घोटू हवा
इन्हे रास नही आती
रौशनी तन जलाती है
फांसी के इन्तजार में कटती जिंदगी को
तड़पती मौत की सजा दे आई हूँ
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment