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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Thursday, February 14, 2019

हो गयी रूह संत

वजहें तमाम थी
तुम्हे प्यार न करने की
पर प्यार के लिए किसी  वजह की जरूरत नहीं पड़ती
इतना ही समझा मैंने
और  घुलते गए तुम मुझमें
जैसे अंधकार में घुलता है
प्राची का लालित्य
और फूटने लगता है उजाला
एक छोर से
और धीरे धीरे हड़प लेता है
पूरा  आसमान

उसने देखा
हुआ मन बसंत
उसने छुआ
हुयी देह अनंत
उसका जाना
 हो गयी रूह संत

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