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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Tuesday, September 17, 2013

रहम करो



मूक अंखियो की तुम  ये गुहार सुन लो
हम में भी जाँ  है ...हमे जीने का अधिकार दो
रहम करो ..रहम करो ....अब तो हम पर रहम करो

अपने जिगर के टुकडे  गर कही खो जाते है
एक सुई उन्हें चुभती तो दर्द तुम्हे तडपाते  है
सोचो क्या हाल होता  है मेरे लख्ते जिगर  का
छुरी गले पर जब चलती जेब तुम्हारी  भरती है
मेरे लहू का हर कतरा उनकी आँखों से छलकता है

 रहम करो ..रहम करो ....अब तो हम पर रहम करो

हम पंछी उन्मुक्त गगन के उड़ते अपनी धुन में
जिसने बनाया तुमको इंसाँ हम भी उनके बेटे
सांसो की सरगम बजती है प्यारे से इस दिल में
हमने भी ममता से सींचा है अपना चमन ये

मेरे घर का आँगन तुम क्यों सूना कर जाते हो
रहम करो ..रहम करो ....अब तो हम पर रहम करो

ओ रहमदिल कहलाने वालो फ़रियाद हमारी सुनलो
अपने सुख की खातिर यूँ न मेरी दुनिया लूटो 

इंसा होकर तुम तो  केवल  हिंसा को अपनाते हो
तुमसे भले हम  बेजुबान है प्रेम पे जान लुटाते है
सृष्टी चक्र  खंडित कर तुम क्या खुद जिन्दा रह पाओगे 
रहम करो ..रहम करो ....अब तो हम पर रहम करो


** नेह  **
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