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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Saturday, March 28, 2015

नारी - तुम हो सृजनहार


प्रिय सखी Chanchala Inchulkar Soni ji ki lajwab painting ko dekh kuchh vichar jo panpe smile emoticon 
नारी हो तुम 
हो सृजनहार
केवल सृजनहार
बीती सदियाँ कितनी
बदले युग
परिवर्तन है नियम सृष्टि का
विकासक्रम में
हाँ
बदल रही हो तुम भी
रूप , वेश ,विचार , दिशा ,दशा
पर
अंततः
तुम हो "माँ"
सृजनहार,
करुणामयी
ममता ,प्रेम,उर्जा का स्त्रोत
सृष्टि की डोर
चाह कर भी नही बदल सकती तुम
बीते चाहे सदियाँ
बीते कितने युग


Thursday, March 26, 2015

मंजिल बाकी है



अभी तो राह  देखी  है मंजिल  बाकी  है
ढली है नींव  ही  केवल मकान बाकी  है ||

 भीड़ में खो नहीं जाना सम्हल चल जरा
जश्न दीवानों का है ये अंजाम  बाकी  है||

 घूम आये मरू गुलशन  पर्वत पर है अब चढ़ना
कसमे बहुत खाली हमने अभी तकरार बाकी है ||

 मंदिर ,मस्जिद  या गिरिजा मिल ही जायेगा खुदा
जहर जीवन का पी ले जो वो  तलाश बाकी है ||

चौखट पर मेरे धूप नही है पनप रहे है बड़ पीपल
छाया बन पाएंगे ये कभी इन्तजार वो बाकी  है ||

खाली प्याले ,चाल सधी है ,प्यास भी मिटी नही ||
मिला जाए कोई साकीबाला अभी तो रात बाकी  है

Wednesday, March 25, 2015

उम्मीदों का मशाल




मेरे यकीन  से यूँ  टकरा  रहे हो
वजूद अपना ही ठुकरा रहे हो ।

चले थे लेकर उम्मीदों का जो मशाल
बन कर आंधी उसी  को बुझा रहे हो ।

कमी न तुममे कोई न कमी मुझमे है
फकत पत्थरो में खुदा तलाश रहे हो ।

मिलता नही किसी को आकाश पूरा
अपने हिस्से का यूँ ही लूटा रहे हो ।







Wednesday, March 18, 2015

एक चाहत




गुलाब - दोस्ती ,प्रेम
---------------------
सफ़ेद ,गुलाबी ,पीला
लाल ,काला
जाने कितने रँग
शाम होते होते मुरझाने लगते
नही लुभाते मुझे
रजनीगंधा - सौम्य ,सुरभित
-----------------------------
संत सी कोने में खड़ी
जैसे हो कान्हा की राधा
मंद मंद मुस्काती
ढलती साँसों के साथ
हवा में घुलती जाती
मिटने के बाद भी
छाया रहता है अस्तित्व
देर तलक
बन कर खुशबू
हरसिंगार -समर्पण
_____________
निशब्द रातो में
चुपचाप खिलना
क्षणिक जीवन
सर्वस्व समर्पण
फिर भी निष्कलंक
जैसे हो मीरा जोगन
चढ़ा दी जाती है भोर होते ही
प्रभु के चरणो में
जाने क्यों
प्यार है मुझे
 हरसिंगार और रजनी गंधा से
खो जाती हूँ इनमे
शायद एक तलाश है
रिश्तो में इनकी
शायद एक चाहत है
बिखर जाने की
और शायद  एक इन्तजार है
उस धरा का  जो फैलाये दामन …



Saturday, March 14, 2015

दरारें


दरारें
----------

उफ्फ्फ्फ़ !!!
ये दरारें
भर तो दिया था
रेता , सीमेंट  डाल
ओह !!!
जगह समतल नही हुयी
और
धब्बेदार
 महीन सी लकीर
जाती क्यों नही !!!

Wednesday, March 11, 2015

जब कहीं कुछ नही होता



जब कहीं कुछ नही होता
एक शुन्य पसरा होता है
अनंत ,असीम
उस शून्य में भी कुछ होता है
सतत गतिशील
 कुछ अस्फुट सी आवाजे
या कोई संगीत
निर्विकार भाव से
आस  पास के वातावरण में
तलाशती ……
अपना अस्तित्व ।



Wednesday, March 4, 2015

जीवन के रंग



अंबर ,धरती
फूल ,शूल,पल्लव
सिंधु ,अग्नि ,बादल
 छू कर इन्द्रधनुष
 रह जाता पारदर्शी ,बेरंग
जादूगर पवन
लुटाता प्रकृति पर
जीवन के रंग
क्या यही है --प्रेम ?
शायद यही है प्रेम ---- 

Tuesday, March 3, 2015

खोल दिए है बंधन मन के


लय , छंद, सुर, ताल से परे 

खोल दिए है बंधन मन के 
अब मौन है तुम हो मैं हूँ 
नीरव में उजास-समय साक्षी पुलके

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दिन महीने साल बीत तो जायेंगे
बिना तेरे हम चैन कहाँ पाएंगे
लम्हा लम्हा पुकारेगा दिल तुझको
आरजू में तेरी मिटते जायेंगे
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