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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Wednesday, July 29, 2015

वर्ण पिरामिड -ग्राम


ये
धूप
 चाँदनी
 हरीतिमा
 डसे भुजंग
पाश्चात्य लहर
नगरो का विस्तार   |


 वो
 खेत
 रहट
 पनघट
परम्पराएँ
 बैठक सजाती
 तस्वीरों में जिन्दा है ।

Friday, July 24, 2015

प्रेमसाधना,यादें

प्रेमसाधना
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हद से गुजर जाते है 
जब ख्यालो में तुम्हारे
गूंगे हो जाते है अलफ़ाज़
छिप जाते है गहराई में
कही गहरे सागर में
की डाले न विध्न
कोई आवाज़
इस प्रेम साधना में

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यादें
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यादें नही
गेसुओं में उलझी
जल की नाजुक बूँदें
की
झटक दूँ
और बिखर जाएँ


Sunday, July 19, 2015

काल कोठरी



कालकोठरी
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जाने क्यों खोल आई थी
काल कोठरी की
जंग लगी जंजीरों को
थरथराने लगी है
सजायाफ्ता अभिलाषायें
बाहर की दम घोटू हवा
इन्हे रास नही आती
रौशनी तन जलाती  है
फांसी के इन्तजार में कटती जिंदगी को
 तड़पती मौत की सजा दे आई हूँ




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