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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Sunday, October 14, 2012

हरसिंगार ..



 हाइकु एवम तांका 

शरद ऋतू में खिलने वाला "हरसिंगार " मुझे बहुत विस्मित करता है ...ये फूल आधी रात के बाद खिलता है पर सुबह होते ही खुद को धरा के आगोश में समर्पित कर देता है। कहते शायद ही कोई कभी इसे खिलते देख पता हो और जब ये खिलता है तो एक प्रकार की आवाज़ होती है जैसे कही कुछ चटका हो ....


निशब्द निशा
चटकता यौवन
महकी हवा
अभिसारिका धरा
स्तब्ध निहारे  उषा

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भीनी सी रात 
चटकी कली .... झड़ी
हरसिंगार ..



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धरा नहाई
चली कर श्रृंगार ..
फूलों से आज 


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मेघ सदृश्य 
कास  लहलहाते
शरदोत्सव

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फूल खुशबू
इनायत खुदा की
संजो रखना

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फूल खुशबू
इनायत खुदा की
बिगाड़े इंसा 






2 comments:

Unknown said...

बहुत सुन्दर

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

thnx @neel ...... tumne apna bahumulya samay diya ... :)

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