मृगतृष्णा (1)
मृगतृष्णा ......सुख दे जाती
क्षणिक ही सही .....पर अनंत
रुपहला .....कलकल करता सा
अच्छा लगे भागना उनके पीछे
प्यास बढा देती है ....पर
कुछ पल ही सही ....
तृप्ति का एहसास दे जाती है।।
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मृगतृष्णा (2)
यथार्थ से दूर
मरीचिकाएँ ..लुभाती
गर्म रेत पे
कलकल बहती धारा
चमकीली ..स्वच्छ ...
निर्मल सी ..अमृत धारा
बढ़ा देती प्यास
क्षणिक सुख प्राप्ति की
परम उत्कंठा ...
भर देती ऊर्जा
दौड़ लगाती सरपट
सुख की चाह
प्रतिफल ...
मंजिल मिली
रेत ही रेत ..तप्त ..
मुट्ठी से फिसलती चाह
बढ़ा देती प्यास ..
मुड़ के देखा
दूर खड़ा यथार्थ ... मुस्कराता
शायद ठहाके लगाता सा
बुलाता बाहें फैलाये
सिमट जाती उसके आगोश में
छू कर .. महसूस करती
क्या और एक मरीचिका ...???
नही यही है सच्चा सुख
कठोर, निर्मम, निष्ठुर
पर है मेरा ..
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6 comments:
mrig trishna ya khwab kahen, jhootha hi sahi,jine ka andaz kahen.bhatakata hai manav jindagi ki jaddojahad me, khawabon ke saath jine ki tab baat kahen.
wah kirti vardhan sir ji ... bilkul sahi awlokan kiya apne meri is rachna ka ... kuchh pal si sahi ye mrigtrisna sukh ka abhas de jati hai .... jindi me sukh ke kuchh hi chhann dukh ki pida kam kar dete hai un aplo ko jina hai jindadili se ..abhar apka tahe dil se bahumulya pratikriya ke liye :)
जी बहुत बहुत आभार
सुन्दर
मनुष्य जीवन सुन्दर मृगतृष्णा ही तो है.. सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर
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