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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Thursday, August 17, 2017

कहो न सखी



कहो न सखी

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कहो न सखी
क्या कह रही है पायल तेरी
क्या गुन रही है चूड़ियां तेरी
कहो न सखी .........
ईंटो पर ईंटे जमाती
चल पड़ी हो चाल साधती
गा रही है ये प्रणय गीत
या विरह काव्य है रच रही
कहो न सखी .........
गिट्टियों से सुर मिलाती
बज रही है ये खनखनाती
प्रिय की है ये प्रीत भेंट
या की है बेड़ियाँ डली
कहो न सखी ..........
थक के जब ये चूर होती
मीत की सलवट मिटाती
खोलती है लाज के पट
या मन ही मन है सिसकती
कहो न सखी ............

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