दुल्हन सी शर्माती
स्याह हुयी प्राती
बादल थे उत्पाती।
ठोकर जब जब खाती
अल्हड नदिया सी
गति मेरी बढ़ जाती।
मरना तो होगा ही
जी कर दिखलाये
हिम्मत वाला वो ही।
सपना ये सच होगा
होगी भोर सुखद
सूरज अपना होगा।
हरना पथ के हर तम
दीपक बन कर तुम
बाती बन जाये हम ।
रात भर न वो आया
दिन में तड़पाया
साजन न सखी निंदिया।
कुचले मेरे सपने
कोमल सतरंगी
थे वो मेरे अपने।
इक दीप सजाया है
चौखट पर मेरी
आँधी का साया है।
गिन गिन रोटी गढ़ती
पढ़ लिख महिलायें
स्वपन गृह संजोती।
काहे प्रीत बढ़ायी
परदेशी पंक्षी
ऋतु बदले उड़ जाई।
2 comments:
एक से बढ़ कर एक
खूबसूरत माहिया
गढ़ने के लिए बधाई स्नेह
हार्दिक शुभकामनायें
thnx @vibha di ..apse hi sikha :)
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