जब भावो का कलश भरता है
उद्वेलित मन छलक पड़ता है
डूब जाते है शब्द और अक्षर
गुमसुम हो जाती है मेरी कविता |
संवेदनाओ के ज्वार से जूझे
टूटती ,बनती, ,घायल होती
ठगी ,बेबस जब अंक में लौटी
रोती लिपट मुझसे मेरी कविता |
मिथक ,रूढ़ियों से टकराती
नित नव परिभाषाये गढ़ती
कलंकिनी जब तमगा पाती
तब -तब लड़े मुझसे मेरी कविता |
शब्दों ,छन्दो से सजी धजी
सकुचाई नवोढ़ा सी चली
छूती जब जब पिया का जी
लगती गुनगुनाने मेरी कविता ।
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