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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Tuesday, August 4, 2015

चलो आज पुरानी धूल भरी गलियों में


चलो आज  पुरानी धूल भरी गलियों में

बचपन की पीठ पर धौल एक जमाये

अम्मा  के  पल्लू से पोंछे फिर हाथ
 आसमां को मुट्ठी में फिर बांध लाये

अब्बा का चश्मा  छुपा दे कहीं पर
आँखों  में उनकी सितारे भर आयें

उड़ाये पतंग फिर सपनो की डोर बाँध
आजादी का चलो जश्न यूँ  मनाये

नाचे बरसात में छई छपाक छई
कागज की कश्ती को छाता उढ़ाये

चुरा लाये मनीप्लांट पडोसी  के घर से
ख्वाहिशो की अपनी फेहरिस्त बनाये

सोया मोहल्ला एक पटाखा चलाये
चलो न   फिर से हम  बच्चे बन जाए







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