ओ राम दुलारे ,रहिमन प्यारे
तू नानक भज या ईसा ध्याले
सब में मैं ही बसा
जरा ध्यान तू करले ...
ॐ जाप तू कर ले ....ॐ ॐ ज़प ले
जा तू काशी या जा काबा
गुरूद्वारे जा या तू गिरिजा
महल अनेको तुमने बनाये
पर मैं तेरे मन का चेरा
जरा झांक तू मन में .......
ॐ जाप तू करले ......ॐ ॐ ज़प ले
धर्म अनेकों तुमने पाले
पर इंसा धर्म न पाला रे
पाना चाहो मुझको तो फिर
इंसा बन के दिखाना रे
जरा मन में विचार ले .......
ॐ जाप तू करले ......ॐ ॐ ज़प ले
कहले मुझको ॐ या अल्लाह
होली सोल या एक आधारा
मैं तो हूँ बस प्रेम की इक लौ
जलना चाहूँ तेरे अन्दर
जग रोशन कर दे .... .
ॐ जाप तू करले ......ॐ ॐ ज़प ले
6 comments:
सुन्दर धार्मिक भाव ।
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार @दुर्गा प्रसाद जी :)
ओम ही तो एक तत्व है जो सब में सामान है ...
रचना पर आपकी अनमोल प्रतिक्रया के लिए हार्दिक् आभार :)
सुन्दर ब्लॉग और रम्य रचना |
स्वागत है आपका तुषार जी .. सराहना के लिए हार्दिक आभार :)
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