नव्या में कुछ दिन पूर्व प्रकाशित मेरी रचना "नीड़ के पाखी " सभी dosto के सम्मुख अवलोकनार्थ .. :) और इस रचना के प्रकाशन का सारा श्रेय मेरे परम मित्र को जाता है जिसने मुझे जरुरी मार्गदर्सन दिया और प्रेरित किया नव्या में प्रकाशन हेतु भेजन के लिए ... नव्या की संपादिका आदरणीया जी की भी तहेदिल से आभारी हु जिन्होंने इस रचना को प्रकाशित कर मुझे अनुगृहित किया :) अब आप सभी की निःसंकोच राय का तहेदिल से स्वागत है :)
नीड़ के पाखी
चल उड़ रे पाखी ,नीलगगन
उड़ चल तू पर्वत से ऊँचे बादल के पार
मंजिल तेरी अनंत आकाश
अंजाना सफ़र,चलना है अविरल
जाने कितने सखा सहोदर
देवदार बट पीपल उपवन
छांव घनेरी तुझको लुभाए
ख्वाबों संग तेरे दौड़ लगाये
थकने लगे जब व्याकुल पंख
लौट चले तेरे सखा सहोदर
रुक ..जरा पीछे मुड़ देखना
खड़ा हुआ हूँ बाहें फैलाये
उसी धरा पर पैर जमाये
आ बैठना गोद में मेरी
सुस्ता लेना पल दो पल
नयी उर्जा नयी आशा भर कर
नयी किरणों के रथ चढ़ कर
आसमान के राही तुम
चल देना फिर नयी डगर पर
** नेह **
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