जब भी नज्मों में आपकी हम ढलते है
बनकर खुशबू सहरा में हम बिखरते है ।
उड़ा ले न जाए आँधियाँ ये धूल भरी
सीप बन तेरी आगोश में छुपे रहते है ।
जब थामती है सागर सी बाँहें मुझको
कतरा- कतरा तुझमे कहीं पिघलते है ।
छोड़ जायेंगे अपने कदमो के निशान
तपती रेत पर नंगे पाँव हम चलते है ।
एक बार मुड़कर कभी पुकारोगे हमें
आस ये ही लिए राहों में ख़ड़े रहते है ।
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