.

.
** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Wednesday, February 18, 2015

कभी पुकारोगे हमें



जब भी नज्मों में आपकी हम ढलते है
बनकर खुशबू सहरा में हम बिखरते है ।

उड़ा  ले न जाए आँधियाँ ये धूल भरी
सीप बन तेरी आगोश में छुपे रहते है ।

जब  थामती है सागर सी बाँहें मुझको
कतरा- कतरा  तुझमे कहीं पिघलते है ।

छोड़ जायेंगे अपने कदमो के निशान
तपती रेत पर नंगे  पाँव  हम चलते है ।

एक बार मुड़कर कभी पुकारोगे हमें
आस ये ही लिए राहों  में ख़ड़े  रहते है ।



No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...