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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Wednesday, March 25, 2015

उम्मीदों का मशाल




मेरे यकीन  से यूँ  टकरा  रहे हो
वजूद अपना ही ठुकरा रहे हो ।

चले थे लेकर उम्मीदों का जो मशाल
बन कर आंधी उसी  को बुझा रहे हो ।

कमी न तुममे कोई न कमी मुझमे है
फकत पत्थरो में खुदा तलाश रहे हो ।

मिलता नही किसी को आकाश पूरा
अपने हिस्से का यूँ ही लूटा रहे हो ।







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