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** हेलो जिन्दगी * * तुझसे हूँ रु-ब-रु * * ले चल जहां * *

Sunday, June 21, 2015

पिता …


पिता …
यह शब्द सुनते ही मन में एक गर्व , आत्मविस्वास और सुरक्षा का अहसास भर जाता है । पिता मेरे लिए एक विचार ,मेरे अस्तित्व का एक हिस्सा  है।

 मेरी ये रचना केवल मेरे जन्म दाता  पिता को नही वरन पिता के रूप में जिन चार लोगो से में प्रभावित हुयी या जिनकी छाप कही मेरे अंदर मैं  महसूस करती हु उन सभी को समर्पित है  ।पह्ले मेरे पिता जी ,दूसरे मेरे ससुर जी तीसरे मेरे नाना जी और चौथे मेरे जीवन साथी :)
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पिता …
सिर्फ जन्मदाता नही
सिर्फ पालनकर्ता नही
सिर्फ एक शब्द नही
एक सम्पूर्ण विचार होता है
जो कही बच्चो में पलता है
पिता …
 निरंतर बहती नदी नही
धीर गंभीर  सागर भी नही
अटल खड़ा  पर्वत ही नही
एक सम्पूर्ण सृष्टि होता है
समयानुसार रूप बदलता है
पिता …
कभी निरंकुश राजा वो
कभी परियों का शहजादा
कभी विदूषक कभी सखा वो
आदर्श , संस्कार  के बीज बोता  वो
आत्मविस्वास बन साथ रहता
 पिता … केवल वृक्ष नही
बीज भी  वही होता है







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